पुराने समय की बात है एक गांव में एक फ़क़ीर रहता था। फ़क़ीर के कई शिष्य थे। लेकिन वह फ़क़ीर खुद एक संत saint का भक्त bhakt था। वह हर रोज दूसरे गांव में उस संत के प्रवचन सुनने के लिए जाया करता था। एक दिन फ़क़ीर fakir ने संत से कहा ” मैं 30 साल से उपवास रख रहा हूं, रात को तपस्या करता हूं, सोता भी नहीं हूँ, लेकिन जो ईश्वरीय ishwar ज्ञान की बातें आप करते हैं वह मुझे नहीं आती। आपके जैसा ज्ञान knowledge मुझे कैसे प्राप्त होगा? संत ने कहा कि अभी 100 साल और उपवास fast रखना होगा और फिर तुम्हें मेरे जैसे ज्ञान का सौवें हिस्से का ज्ञान प्राप्त हो जाएगा। संत की बात सुनकर फ़क़ीर परेशान होकर बोला , ” यह मेरे से नहीं हो पायेगा, बहुत कठिन है। कोई और उपाय नहीं है क्या? संत बोला, ”हाँ, एक और उपाय है लेकिन वह तेरे बस का नहीं है।” फ़क़ीर ने कहा ”नहीं नहीं, आप बताइए, मैं आप जैसा ज्ञान प्राप्त करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं।”
संत बोला, ”ठीक है, फिर सुनों, अपनी दाढ़ी-बाल मुंडवा दो, यह चोगा उतार कर लंगोट पहन लो , एक काजू-छुहारों का भरा थैला लेकर चौराहे में बैठ जाओ, जो भी बच्चा बाजार big bazaar में से तेरे पास से गुजरे उसको अपने सिर पर जूते मारने को कहो। जूते खाने के बाद उस बच्चे को ईनाम में काजू-छुहारे देना। कुछ ही दिनों में शहर के सभी बच्चे चौराहे पर आकर तेरे सिर पर जूते shoes मारेंगे और बदले में काजू-छुहारे पाकर खुश हो जाएंगे। ऐसा करने से तुझे मेरे जैसा ज्ञान जल्दी प्राप्त हो जाएगा।
संत की बात सुनकर फ़क़ीर के मुँह से ” या अल्लाह! allah ” की आवाज़ निकली।
संत sant बोला, ”अब देखो, जब तुम्हें जूते पड़ने लगे तो तूने अल्लाह allah का नाम लिया, तुम हमेशा ईश्वर ishwar की बजाय अपने आप को पहले रखते हो।
फ़क़ीर fakir बोला कि मैं एक इज्जतदार फ़क़ीर हूं, मेरे भी शिष्य student हैं, मैं ऐसे सिर मुंडवा कर चौराहे पर जूते खाता कैसा लगूंगा, लोग क्या कहेंगे !!
संत हंसकर बोला, ” मैंने तो तुझे पहले ही कहा था कि यह बात तेरे बस की नहीं है, तेरी समस्या यह है कि तू ईश्वरीय ishwar ज्ञान knowledge को तो पाना चाहता है लेकिन अपने आपको छोड़ना भी नहीं चाहता। एक बात ध्यान meditation से सुन लो, यह दोनों बातें इकट्ठी नहीं हो सकतीं। अगर ज्ञान knowledge को प्राप्त करना है तो अपने अभिमान को छोड़ना होगा, अपनी मैं का त्याग करना होगा।
सार moral – हमारी समस्या भी कुछ ऐसी ही है। हम ईश्वर bhagwan को पाना तो चाहते हैं लेकिन अपने अहंकार का त्याग नहीं करना चाहते। ईश्वर bhagwan के दरबार में अहंकार के साथ नहीं जाया जा सकता। किसी ने कहा है –
”मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मरतबा चाहे,
कि दाना खाक में मिलकर गुल-ए-गुलज़ार होता है।”
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